Saturday, 17 October 2020

गुरु नानक देव पर निबंध Essay On Guru Nanak Dev ji In Hindi

गुरु नानक देव पर निबंध Essay On Guru Nanak Dev ji In Hindi: नानक देव सिख समुदाय के संस्थापक एवं आदि गुरु कहलाते हैं. इन्हें बाबा नानक और नानकशाह के नामों से भी जाना जाता हैं. हिन्दुओं की ब्राह्मण वादी विचारधारा तथा मुस्लिमों के अत्याचार के विरोध स्वरूप सिख सम्प्रदाय की नींव रखी. गुरु नानक महान दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाज सुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु थे, नानकदेव ने आजीवन सनातन धर्म की रक्षार्थ खड़े रहे. आज के गुरु नानक के निबंध में हम उनके जीवन परिचय, इतिहास, जीवनी पर विस्तार से Guru Nanak Dev ji Essay में जानेगे.

Essay On Guru Nanak Dev ji In Hindi

Essay On Guru Nanak Dev ji In Hindi

गुरु नानक देव पर निबंध

गुरु नानक देव का जन्म 1469 ई में तलवंडी ग्राम जिला लाहौर में हुआ था. इनकी मृत्यु 1531 ई में हुई. इनके पिता का नाम कालूचंद खत्री और माँ का नाम तृप्ता था. इनकी पत्नी का नाम सुलक्षण था. कहते हैं कि इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत प्रयास किया किन्तु इनका मन बचपन से ही भक्ति की ओर अधिकाधिक झुकता गया.

उन्होंने हिन्दू मुसलमानों दोनों की समान धार्मिक उपासना पर बल दिया. वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकांड का विरोध करके निर्गुण भक्ति का प्रचार किया. गुरु नानक देव ने व्यापक देशाटन किया और मक्का मदीना तक की यात्रा की. कहते है कि मुगल सम्राट बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी.

यात्रा के दौरान इनके साथी और शिष्य रागी नामक मुस्लिम रहते थे, जो इनके द्वारा रचित पदों को गाते थे. गुरु नानक देव ने सिख धर्म का प्रवर्तन किया. इनकी  रचनाओं में धार्मिक विश्वास, नाम स्मरण, एकेश्वरवाद, परमात्मा की सर्वव्यापकता, विश्व प्रेम नाम की महत्ता आदि  का परिचय मिलता हैं.

गुरु नानक देव की वाणी का प्रत्येक उदगार अनुभूति की गहराई से निकला प्रतीत होता हैं. सरलता और अहंभावशून्यता इनकी प्रकृतिगत विशेषताएँ हैं. निरीहता एवं दैन्य की अभिव्यक्ति में ये रैदास के समतुल्य हैं. इनका अधिकाँश साहित्य पंजाबी में है, किन्तु कहीं कहीं ब्रजभाषा खड़ी बोली का प्रयोग भी मिलता हैं.

इनकी बानियों का संग्रह आदिग्रंथ के महला नामक खंड में हुआ हैं. इनमें शब्द और सलोकु के साथ जपुजी आसाददीवार, रहि रास एवं सोहिला का भी संग्रह हैं. गुरु नानक देव की ही परम्परा  में उनके उतराधिकारी कवि हुए. इनमें गुरु अंगद, गुरु अमर दास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुन, गुरु तेग बहादुर और दसवें गुरु गोविंद सिंह हैं. गुरु गोविंद सिंह मरर अनेक काव्य ग्रंथों की रचना की, गुरु नानक देव की कविता का एक अंश देखिये.

"जो नर दुःख में दुःख नहि मानै

सुख स्नेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै

नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना

हर्ष सोक ते रहैं निचारों, नाहिं मान अपमाना"

Short Paragraph & Essay on guru nanak dev ji in hindi​ Language In 250 Words

सिख धर्म के प्रवर्तक एवं आदि गुरु गुरू नानक देव जी का जन्म 14 अप्रैल 1469 को लाहौर के तलवंडी में हुआ था, वर्तमान में यह पाकिस्तान में हैं. इनके पिताजी का नाम कल्याणचंद था, जो एक कास्तकार थे. जब नानक 16 वर्ष के हुए तो इनका विवाह हो गया, इनके दो पुत्र भी थे, जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मीचंद रखा गया था.

सिखों के पहले गुरू नानक देव को उनके अनुयायी गुरु नानक, बाबा नानक और नानकशाह आदि नामों से जानते हैं, इन्ही के नाम पर बाद में तलवंडी का नाम बदलकर ननकाना साहिब हुआ.

बालपन से ही नानक का आध्यात्म के प्रति गहरा झुकाव रहा, स्कूल जाने और पढ़ने में इन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी, मात्र आठ वर्ष की आयु में ही इन्होने स्कूल जाना छोड़ दिया तथा ईश्वर के नाम स्मरण में जीवन बीतता गया. 22 सितम्बर 1539 ई में गुरु नानक का देहांत हो गया, जब ये 70 वर्ष के थे.

गुरू नानक देव ने जीवन भर न केवल मानवता को सही राह दिखाई, बल्कि हर अवसर पर सनातन धर्म की इस्लाम से रक्षा की, यही वजह है कि नानक जितने प्रिय सिक्खों के है उतने ही आदरणीय हिन्दुओं के लिए भी हैं. गुरू नानक देव के जन्मदिन को गुरु परब अर्थात गुरुपर्व के रूप में धूमधाम से मनाया जाता हैं. यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन पड़ता है यह सिक्ख समुदाय का एक महत्वपूर्ण पर्व हैं.

गुरु नानक जी का दर्शन

नानक देव ने परम्परागत रूप से चली आ रही मूर्ति पूजा की परम्परा का विरोध किया. वे सर्वेश्वरवाद के समर्थक थे. उन्होंने सनातन में एकेश्वरवाद अर्थात अलग अलग ईश्वरों को मानने की बजाय एक ही ईश्वर का ध्यान करने का संदेश दिया. मानव मात्र के प्रतीक नानक देवजी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों एवं आडम्बरों का भी पुरजोर विरोध किया. उन्होंने धर्म के अलावा राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी स्थितियों के सुधार का मार्ग सुझाया. वे नारी सम्मान के पक्षधर थे उन्होंने अपनी लेखनी में भी नारी को उच्च स्थान दिया. वे हिन्दुओं और मुसलमानों को मिलकर रहने तथा अलग अलग मत होने के बावजूद उनमें आपसी सामजस्य स्थापना के पक्षधर थे.

हिंदी साहित्य से संबंध

गुरु नानक देव जी की गिनती हिंदी काव्य धारा के भक्तिकाल के शीर्ष कवियों में की जाती हैं. निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी धारा के मुख्य विचारकों में ये भी एक थे. इनके सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने लिखा हैं कि ये भक्ति भाव से पूर्ण होकर भजन किया करते थे. इनकी सभी रचनाओं का संग्रह गुरु ग्रन्थ साहब में मिलता हैं.

गुरु नानक की मृत्यु

जीवन भर मानवता एवं एक ईश्वर की प्रार्थना का संदेश देने वाले नानक देव को सर्वाधिक ख्याति जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान ही मिली. इस समय तक उनके विचारों में भी काफी बदलाव देखा गया. वे मानव मात्र की सेवा करते हुए पारिवारिक जीवन बिताने लगे. जीवन के अंतिम पडाव में इन्होने करतारपुर नामक शहर की स्थापना की, वर्तमान में यह पाकिस्तान में हैं तथा सिख श्रद्धालुओं के लिए यह पिछले वर्ष ही पाकिस्तान द्वारा सद्भावना संदेश के नाम पर खोला गया था. इन्होने यहाँ एक बड़ी धर्मशाला का भी निर्माण करवाया था. यही करतारपुर में गुरु नानक देव ने 22 सितंबर 1539  को देह त्यागी. उनके देहांत के बाद प्रिय शिष्य लहना उत्तराधिकारी बने जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से सुप्रसिद्ध हुए.

गुरु नानक देव की रचनाएँ कविताएं

मानव प्रेम का संदेश देने वाले उदार ह्रदय के धनी गुरु नानक ने प्रकृति के साथ एकात्म होकर अपने भावों को अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया. वे एक सूफी कवि भी थे. इनकी भाषा अपने आप में विशिष्टता लिए हुए थी, जिन्हें बहता नीर की संज्ञा दी गई. इनकी भाषा में फ़ारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिन्धी, खड़ी बोली और अरबी के शब्द समाहित थे. गुरु ग्रन्थ साहिब के 19 रागों में इनके ९७४ शब्द गुरबाणी में संकलित हैं. जपजी, सिद्ध गोष्ट, सोहिना, दखनी ओंकार, आसा दी वार, पट्टी और बाढ़ माह उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं हैं.

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं

नानक देव जी ने ईश्वर स्मरण के सम्बन्ध में कहा हैं "सोचै सोचि न होवई, जो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहालि वतार" यानि ईश्वर को केवल सोचने भर से जाना नहीं जा सकता हैं इसलिए उनके नाम का स्मरण करो. उन्होंने ईश्वर को जपने के दो तरीके भी बताएं हैं. पहला संगत में रहकर प्रभु का जप करो अथवा एकांत में बैठकर प्रभु का ध्यान धरो. ऐसा करने से मन एकाग्र हो जाता हैं तथा आध्यात्मिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास भी हो जाता हैं.

ईश्वर सभी दिशाओं कण कण में विद्यमान हैं. जब नानक देव मक्का की यात्रा पर गये तथा एक विश्राम गृह में रुके तो लेटते हुए उन्होंने पैर मक्के की तरफ कर दिए. इससे नाराज होकर एक हजी ने उन्हें कहा आप मक्के मदीने की तरफ पैर करके क्यों लेटे हैं. तब नानक कहते हैं आपको यह अच्छा नहीं लगा तो मेरे पैर उस दिशा में रख दो जिधर खुदा न हो. वे उन्हें समझाते हैं कि ईश्वर का वास दशों दिशाओं में हैं.

गुरु नानक देव ने पहली शिक्षा दी कि हर मनुष्य किरत करें इसका आशय यह हैं कि हम मेहनत कर ईमानदारी का कमाकर खाए, आज के सिख धर्म के मूल में यह शिक्षा काम कर रही हैं. उनके प्रत्येक अनुयायी श्रम के बल पर आजीविका कमाने में विश्वास करते हैं. उनकी दूसरी शिक्षा थी वंड छको. यानी समर्पण का भाव रखे, आज भी सिख अनुयायी अपनी आय का दसवां भाग लंगर के लिए दान करते हैं. इस कमाई के हिस्से को दसवन्ध कहा जाता हैं.

गुरु नानक जयंती | Guru Nanak Jayanti in Hindi

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख गुरु, गुरु नानक देव का जन्म हुआ था. उनके जन्म दिवस के उपलक्ष्य में इस तिथि को गुरु पूरब या गुरु पर्व मनाया जाता हैं. सिख अनुयायियों के लिए यह सालभर के बड़े दिनों में से एक माना जाता हैं. जयंती के अवसर पर भक्तों द्वारा उनका स्मरण किया जाता हैं. वे मानव मात्र से प्रेम करते हुए ईमानदारी, नैतिकता और सच्चाई के सहारे जीवन जीने की सीख देते थे. उनके प्रति श्रद्धा और आस्था में आज समूचा संसार नतमस्तक हैं. उनका छोटा सा जीवन हम सबके लिए प्रेम, ज्ञान और वीरता का संदेश देने वाला हैं. उनकी शिक्षाएं सदियों तक मानव जाति का पथ प्रदर्शित करती रहेगी.

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